कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मु`अय्यन है
नींद क्यूं रात भर नहीं आती
क्यूं न चीख़ूं कि याद कर्ते हैं
मिरी आवाज़ गर नहीं आती
हम वहां हैं जहां से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
मर्ते हैं आर्ज़ू में मर्ने की
मौत आती है पर नहीं आती
क`बे किस मुंह से जाओगे ग़ालिब
शर्म तुम को मगर नहीं आती
* Courtesy The Legendary Mirza Galib
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